स्वापक नियंत्रण ब्यूरो का सृजन मार्च 1986 में नारकोटिक ओषधियाँ एवं स्वापक पदार्थ अधिनियम, 1985, जो केन्द्र सरकार के पर्यवेक्षण और नियंत्रण के अध्यधीन इस अधिनियम के तहत केन्द्र सरकार द्वारा यथा निर्धारित मामलों के संबंध में उपाय करने हेतु प्राधिकरण पर विचार करने के लिए, उक्त अधिनियम की धारा 4(3) के अनुसार किया गया था।एन सी बी के गठन संबंधी दिनांक 17-03-1986 की अधिसूचना में ब्यूरो के चार्टर में निम्नलिखित बिन्दु हैं
- मुख्य अधिनियम के तहत, सीमा शुल्क अधिनियम, 1962, औषधियां एवं सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और मुख्य अधिनियम के प्रवर्तन के संबंध में तत्समय प्रवृत्त कोई अन्य कानून, विभिन्न अधिकारियों, राज्यु सरकारों और अन्य प्राधिकारियों के कार्यों में समन्वय
- विभिन्न अन्तरराष्ट्रीय अभिसमयों के तहत अनैतिक व्यापार रोधी उपायों के संबंध में बाध्यताओं का कार्यान्वयन
- नारकोटिक औषधियों और मन: प्रभावी पदार्थों के अवैध व्यापार के निवारण और रोकथाम में समन्वय और सामान्य कार्रवाई सुकर बनाने के उद्देश्य से विदेशों और संबंधित अन्तरराष्ट्रीय संगठनों के संबंधित प्राधिकारियों को सहायता।
- औषधियों के दुरुपयोग से जुड़े मामलों के संबंध में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, कल्याण मंत्रालय और अन्य संबंधित मंत्रालय, विभाग अथवा संगठनों के कार्यों में समन्वय।
यद्यपि यह अधिसूचना नारकोटिक नियंत्रण ब्यूरो के बृहत चार्टर को निर्दिष्ट करती है, तथापि ब्यूरो के विस्तृत कार्य राजस्व विभाग द्वारा दिनांक 2 फरवरी, 1987 को जारी कार्यालय ज्ञापन संख्या 50/71/86-प्रशा.। में सविस्तार दिए गए थे। तदनन्तर, अन्य बातों के साथ-साथ, पुरोगामी रसायनों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए मई 1989 में एन डी पी एस अधिनियम में संशोधन करने के पश्चात, पुरोगामी रसायनों पर घरेलू नियंत्रणों का कार्यान्वयन भी ब्यूरो को सौंप दिया गया। इन कार्यों के अतिरिक्त, नारकोटिक नियंत्रण ब्यूरो एन डी पी एस अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए भी जिम्मेदार है, जो कार्य यह अपने दस जोनल एवं क्षेत्रीय कार्यालयों के माध्यम से करता है। नारकोटिक औषधियाँ एवं मन: प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 भारत में औषधियों संबंधी कानून के प्रवर्तन के लिए विधिक ढाँचे का गठन करता है। यह अधिनियम विद्यमान अधिनियमों यथा अफीम अधिनियम, 1857, अफीम अधिनियम, 1878 और हानिकर औषधि अधिनियम, 1930 का समेकन करने के लिए अधिनियमित किया गया था। भारत 1961 की सिंगल कन्वेंशन, मन: प्रभावी पदार्थों के विरोध में 1971 का अभिसमय और नारकोटिक औषधियों एवं मन: प्रभावी पदार्थों की तस्करी के विरोध में 1988 के अभिसमय का सदस्य है। इन अभिसमयों के तहत भारत की बाध्यताएं एन डी पी एस अधिनियम के समुचित प्रावधानों के माध्यम से कार्यान्वित की जाती हैं। स्वापक औषधि एवं मन: प्रभावी पदार्थों पर उपर्युक्त पैरा में उल्लेख्य तीन अन्तरराष्ट्रीय अभिसमयों का हस्ताक्षरकर्ता होने के साथ-साथ, भारत ने विशिष्ट रुप से औषधि संबंधी मामलों पर 14 देशों के साथ द्विपक्षीय करार/समझौता ज्ञापनों और आपराधिक मामलों और संबद्ध मामलों पर द्विपक्षीय करारों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें 9 देशों के साथ औषधियों संबंधी मामले शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, 24 देशों के साथ विशिष्ट रुप से औषधि संबंधी मामलों पर द्विपक्षीय करारों/समझौता ज्ञापनों का अनुमोदन हुआ है और ये अंतिम रुप दिए जाने के विभिन्न स्तरों पर हैं। प्रचालनात्मक स्तर पर भारत की औषधि कानून प्रवर्तन रणनीति उचित आसूचना, निषेधादेश एवं जाँच संबंधी पहलें, अवैध औषधि फसलों का उन्मूलन, वैध अफीम फसल नुकसान के निवारण, चुनिंदा पूर्वगामी रसायनों पर देशीय और अन्तरराष्ट्रीय व्यापार नियंत्रणों की व्यवस्था के कार्यान्वयन, और अधिहरण/जब्ती एवं समपहरण द्वारा औषधियों की तस्करी से अर्जित सम्पत्तियों को उद्देश्य बनाकर तस्करी से निपटने पर संकेन्द्रित है। भारतीय भूभाग एवं हमारी संघात्मक राजव्यवस्था को देखते हुए केन्द्रीय और राज्य स्तर दोनों पर बहुत-सी एजेसियों को एन डी पी एस अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। इन एजेंसियों के बीच प्रभावकारी समन्वय हमारी औषधि कानून प्रवर्तन रणनीति प्रभावोत्पादकता के लिए अनिवार्य है। समन्वय संबंधी कार्य स्वापक नियंत्रण ब्यूरो को सौंपा गया है। अपने चार्टर के अनुसार, ब्यूरो निम्नलिखित कार्य करता है:
- औषधि कानून के प्रवर्तन में सक्रिय विभिन्न केन्द्रीय एवं राज्य एजेंसियों के बीच समन्वय करना;
- राज्यों को उनके औषधि कानून प्रवर्तन के प्रयासों में सहायता करना;
- आसूचना एकत्र करना और इसका आदान-प्रदान करना;;
- जब्ती संबंधी ऑकड़ों का विश्लेषण, प्रवृत्ति का अध्ययन एवं कार्यप्रणाली;
- राष्ट्रीय औषधि प्रवर्तन सांख्यिकी तैयार करना;
- यू एन डी सी पी, आई एन सी बी, इन्टरपोल, सीमा शुल्क समन्वय परिषद, आर आई एल ओ इत्यादि जैसी अन्तरराष्ट्रीय एजेंसियों से सम्पर्क स्थापित करना;
- आसूचना एवं जाँचों के लिए नेशनल कॉन्टैक्ट प्वाइंट