इस प्रभाग का सृजन वामपंथी उग्रवाद की समस्या का समग्र रूप में प्रभावी तरीके से निराकरण करने के लिए मंत्रालय में 19 अक्तूबर, 2006 को किया गया था। वामपंथी उग्रवाद प्रभाग वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों में क्षमता निर्माण के उद्देश्य से सुरक्षा संबंधी योजनाएं कार्यान्वित करता है। यह प्रभाग वामपंथी उग्रवाद की स्थिति तथा प्रभावित राज्यों द्वारा किए जा रहे प्रतिरोधी उपायों की निगरानी करता है। वामपंथी उग्रवाद प्रभाग वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों में भारत सरकार के मंत्रालयों/विभागों की विभिन्न विकास संबंधी योजनाओं के कार्यान्वयन का समन्वय करता है। छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, और केरल राज्यों को वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित माना जाता है, हालांकि अलग-अलग राज्यों में वामपंथी उग्रवाद की स्थिति अलग-अलग है।
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कुछ दशकों से देश के दूर-दराज में तथा संचार के साधनों से अच्छी तरह न जुड़े कतिपय भागों में अनेक वामपंथी उग्रवादी संगठन सक्रिय हैं। वर्ष 2004 में एक महत्वपूर्ण घटना क्रम में पीपल्स वार (पी. डब्ल्यू.), जो पहले आंध्र प्रदेश में सक्रिय था, तथा माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया (एम. सी. सी. आई.), जो पहले बिहार और पड़ोसी क्षेत्रों में सक्रिय था, के विलय द्वारा सी.पी.आई. (माओवादी) पार्टी बनी। सी.पी.आई. (माओवादी) पार्टी एक प्रमुख वामपंथी उग्रवादी संगठन है जो हिंसा तथा नागरिकों और सुरक्षा बलों की हत्या की अधिकांश घटनाओं के लिए जिम्मेदार है तथा इसे इसके सभी गुटों तथा प्रमुख संगठनों सहित विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 के अंतर्गत आतंकवादी संगठनों की अनुसूची में शामिल किया गया है। सरकार को उखाड़ फेकने के लिए सशस्त्र विद्रोह का सी. पी. आई. (माओवादी) सिद्धान्त भारतीय संविधान और भारत राष्ट्र के संस्थापक सिद्धांतों में स्वीकार्य नहीं है। सरकार ने हिंसा छोड़ने तथा बातचीत के लिए आगे आने के लिए वामपंथी उग्रवादियों का किया है। इस अनुरोध को उन्होंने अस्वीकार्य कर दिया है क्योंकि वे सत्ता हथियाने के साधन के रूप में हिंसा में विश्वास करते हैं। इसके परिणाम स्वरूप भारत के अनेक भागों में हिंसा की निरंतर घटनाएं हुई हैं। आदिवासियों जैसे निर्धन और पिछड़े वर्ग इस हिंसा के शिकार हो रहे हैं। अनेक उदार बुद्धजीवी माओवादी विद्रोह के सिद्धान्त, जो हिंसा को महिमा मंडित करता है तथा सत्ता हासिल करने के लिए सैन्य सिद्धांत को अपनाने में विश्वास करता है, के सही स्वरूप को समझे बिना माओवादी प्रचार का शिकार बन जाते हैं। वर्ष 2004 से 2025 (31 मार्च) के मध्य भारत के विभिन्न भागों में वामपंथी उग्रवादियों द्वारा लगभग 8895 लोगों की हत्या की गई है। मारे गए अधिकांश नागरिक आदिवासी होते हैं जिनको बेरहमी से यातना दिए जाने और मारे जाने से पूर्व अक्सर ‘पुलिस मुखबिर’ की संज्ञा दी जाती है। वास्तव में ये आदिवासी और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग, जिनके हित का समर्थन करने का माओवादी दावा करते हैं, भारतराष्ट्र के विरुद्ध सी.पी.आई. (माओवादी) के कथित ‘प्रोट्रेक्टेड पीपल्स वार’ के सबसे बड़े शिकार हुए हैं।
भारत सरकार का यह मानना है कि विकास और सुरक्षा संबंधी पहलों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए एक समग्र दृष्टिकोण से वामपंथी उग्रवाद की समस्या से सफलता पूर्वक निपटा जा सकता है। तथापि यह स्पष्ट है कि वामपंथी उग्रवादी कम विकास जैसे मुख्य कारणों का सार्थक तरीके से निराकरण करना नहीं चाहते हैं क्योंकि वे विद्यालय भवनों, सड़कों, रेल मार्गों, पुलों, स्वास्थ अवसंरचना, संचार सुविधाओं आदि को व्यापक रूप से लक्ष्य बनाने का सहारा लेते हैं। ये अपनी पुरानी विचारधारा को कायम रखने के लिए अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में लोगों को हासिये पर रखना चाहते हैं। इसके परिणामस्वारूप वामपंथी उग्रवाद के प्रभाव ने देश के अनेक भागों में विकास की प्रक्रिया को दशकों पीछे धकेल दिया है। इसे सिविल समाज तथा मीडिया द्वारा समझे जाने की आवश्यकता है, ताकि वामपंथी उग्रवादियों पर हिंसा छोड़ने, मुख्य धारा में शामिल होने तथा इस तथ्य को स्वीकार करने के लिए दवाब बनाया जा सके कि 21वीं सदी के भारत की सामाजिक-आर्थिक तथा राजनीतिक सोच और आकांक्षाएं माओवादी दृष्टिकोण से पूरी नहीं हो सकतीं। इसके अतिरिक्त हिंसा और विनाश पर आधारित कोई विचार धारा ऐसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में सफल नहीं हो सकती जिसमें शिकायतों के निराकरण के वैध मंचों की व्यवस्था है।
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